अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा
यह परीक्षा १९८० में आरम्भ की गई थी जिसमें कक्षा चतुर्थ से द्वादश तक एक घंटे के अन्तराल का प्रश्नपत्र तैयार किया जाता है। परीक्षा से जुड़ी जानकारियों के लिए इन विद्यार्थियों को छोटी-छोटी पुस्तकों द्वारा जानकारी प्रदान की जाती है। इन पुस्तिकाओं का स्तर कक्षाओं के साथ बढ़ता है। प्रश्नपत्रों में प्रश्न भारतीय संस्कृति, धर्म, इतिहास, मेले एवं त्यौहार, धार्मिक स्थल, नदियां, पर्वत, राष्ट्रीय विभूतियों, खेल एवं वर्तमान परिपेक्ष्य में होनी वाली गतिविधियों के विषय के बारे में पूछे जाते हैं। इसी भांति के प्रश्नों से युक्त परीक्षाएं विद्या भारती से सम्बन्धित विद्यालयों के आचार्यों हेतु भी आयोजित की जाती हैं इन परीक्षाओं को तीन स्तरों प्रथमा, मध्यमा एवं उतमा पर लिया जाता है। जो लोग भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति जैसे विषयों का गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं उनके लिए उच्चतम श्रेणी के अध्ययन एवं परीक्षा जिसे प्रज्ञा परीक्षा कहते हैं का आयोजन किया जाता है। इच्छुक विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं आम जनता के लिए इन विषयों की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से भी उपलब्ध की जाती है। ये परीक्षा उन विद्यार्थियों के लिए भी उपलब्ध है जो विद्या भारती के छात्र नहीं हैं जो विद्यार्थी उतीर्ण होते हैं उन्हें प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
आचार्य संस्कृति ज्ञान परीक्षा
प्रत्येक वर्ष आचार्यों के लिए भी संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इस परीक्षा के चार स्तर हैं प्रथमा, मध्यमा, उतमा प्रशस्ति पत्र योग्य अध्यापकों को प्रदान किया जाता है।। चौथे स्तर को प्रज्ञा परीक्षा कहते हें। यह उन आचार्यो के लिए है जो प्रथम तीन श्रेणियों को सफलतापूर्वक उतीर्ण करते हैं।
प्रश्नमंच
प्रादेशिक क्षेेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रश्नमंच प्रतियोगिताएं चार स्तरों पर आयोजित की जाती हैं ये चार शिशु, बाल,किशोर व तरूण वर्गों में आयोजित होती हैं। इन प्रतियोगिताओं का विषय विभिन्न प्रकार के संस्कृति ज्ञान की पुस्तकों से निश्चित किया जात है। कुछ और पुस्तकेंं भी समय≤ पर संस्कृति खगोल, स्वतन्त्रता आन्दोलन एवं राष्ट्रीय पुरूषों की जयन्तियों, सन्तों एवं वैज्ञानिकों की जीवनियों से लिया जाता है।
निबन्ध लेखन प्रतियोगिता
यह कार्यक्रम भी राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। प्रतियोगिता चार श्रेणियों शिशु,बाल किशोर एवं तरूण में की जाती है। राज्य स्तर पर निबन्ध लेखन प्रतियोगिता आयोजित की जाती है प्रथम तीन निबन्धों को राज्य स्तर पर पुरस्कृत किया जाता है निबन्ध के विषय पुण्यभूमि भारत रखा जाता है जिसमें भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति, इतिहास, पर्यावरण, समाज के वर्तमान संदर्भ एवं महापुरूषों की जीवनियों से लिया जाता है।
“ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो। “
“स्वामी विवेकानंद”
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